A review by gipsyt
देवदास by शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय, Sarat Chandra Chattopadhyay

3.0

परिचित प्रेम कहानियों की लीक से हटकर लिखी गई कथा है. उपन्यास के नायक का मार्मिक अंत प्रेम की सीमाओं और उससे पैदा होने वाले विकारों को बड़े क्रूर ढंग से चित्रित करता है. किन्तु कहीं कुछ खोया हुआ सा लगता है इसका कारण शायद बांग्ला से हिंदी में किया गया अनुवाद हो या शायद इस उपन्यास के लेखन के समय लेखक की मनोदशा हो. पढ़ने पर लेखक का क्रोध और प्रेम के प्रति रोष स्पष्ट झलकता है. श्रीकान्त की तुलना में मैं इसे कमतर ही मानूँगा.