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A review by indravijay
Yashodhara: A Novel by Volga, P.S.V Prasad
5.0
मेरी आदत है कि मैं आठ दस किताबें एक साथ खरीदता हूँ। कुछ दिनों से ज्यादातर ऑनलाइन पढ़ रहा था ऐसे में दुकान जा कर किताबें खरीदने का अवसर मोहित कर गया। किताबें चुनने के दौरान मेरी नजर इस उपन्यासपर पड़ी। मंजुल पब्लिशिंग हॉउस की यह किताब पेपरबैक में बहुत ही सुंदर प्रिंटिंग और कवर के कारण हाथ में लिया। पता चला कि तेलगु साहित्य की उल्लेखनीय हस्ती वोल्गा के इस उपन्यास को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका था। बुद्ध को कितनी बार भी पढ़ूँ, कितनी बार भी जानू पर एक अदृश्य रहस्यमयी जादुई आकर्षण कभी खत्म नहीं होता है। अनुवाद खरीदते समय हमेशा मन मे भरम हित है कि पता नहीं कैसे अनुवादित की गई हो। कहानी का सही भाव दूसरी भाषा में आ पाया हो या नहीं। इसके लिए चंद पन्नों को उलट पुलट कर देखा, कुछ लेने पढ़ी और 153 पन्नो की कृति को खरीदने का फैसला किया। 10 किताबों के बीच सबसे पहले इसे ही शुरू करने का निर्णय लिया। जैसे जैसे मैंने पढ़ना शुरू किया एक अद्धभुत आनंद ने मुझे अपने वश में कर लिया। भाषा काल और स्व से परे इस कहानी ने मुझे सीधा गौतम बुद्ध और यशोधरा के सामने खड़ा कर दिया। बुद्ध का पहला परिचय निम्लिखित पंक्तियों द्वारा दिया गया -
उस नवयुवक के शांत और चमकते चेहरे पर युवाओं के मुख पर दिखने वाले अभिमान का लेशमात्र भी नहीं था। उस पर एक आभा थी - ऐसी आभा जो बिल्कुल स्थिर थी। कोई नहीं बता सकता था कि उसके मन में क्या चल रहा था, लेकिन एक बात निश्चित थी कि वह जो कुछ भी था, शांति और अनोखेपन से भरा था, क्योंकि उस युवक के होठों पर एक स्थिर व कोमल मुस्कान थी।
मेरे आंखों के सामने गौतम बुद्ध का सजीव चित्रण था और ऐसा लगा की जैसे मैं उस वक्त वहाँ पर मौजूद होऊँ। मैं अंत तक अभिमंत्रित अवस्था में रहा। बहुत ही उच्च कोटि की रचना है। मैंने इसे पढ़कर जो महसूस किया उसे शब्दों में बताने में मैं असमर्थ हूँ। सरस्वती ने मुझे शब्दों का उतना भंडार नहीं दिया है। ऐसा लगता है जैसे लिखता चला जाऊं पर पढ़ने वालों को ज्यादा बोर करने का इरादा नहीं है इसलिए 10 में से 10 नम्बर देकर के विराम लगाता हूँ।
नोट - ज्यादा भावुकता से भरा हुआ लगे तो उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
उस नवयुवक के शांत और चमकते चेहरे पर युवाओं के मुख पर दिखने वाले अभिमान का लेशमात्र भी नहीं था। उस पर एक आभा थी - ऐसी आभा जो बिल्कुल स्थिर थी। कोई नहीं बता सकता था कि उसके मन में क्या चल रहा था, लेकिन एक बात निश्चित थी कि वह जो कुछ भी था, शांति और अनोखेपन से भरा था, क्योंकि उस युवक के होठों पर एक स्थिर व कोमल मुस्कान थी।
मेरे आंखों के सामने गौतम बुद्ध का सजीव चित्रण था और ऐसा लगा की जैसे मैं उस वक्त वहाँ पर मौजूद होऊँ। मैं अंत तक अभिमंत्रित अवस्था में रहा। बहुत ही उच्च कोटि की रचना है। मैंने इसे पढ़कर जो महसूस किया उसे शब्दों में बताने में मैं असमर्थ हूँ। सरस्वती ने मुझे शब्दों का उतना भंडार नहीं दिया है। ऐसा लगता है जैसे लिखता चला जाऊं पर पढ़ने वालों को ज्यादा बोर करने का इरादा नहीं है इसलिए 10 में से 10 नम्बर देकर के विराम लगाता हूँ।
नोट - ज्यादा भावुकता से भरा हुआ लगे तो उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।